पड़ोस की सेक्सी चाची के साथ सेक्स कहानी
नमस्कार दोस्तो, मेरा नाम पंकज है और मैं इंदौर के पास के एक गांव से हूं। मुझे आंटियों में बहुत ही ज्यादा दिलचस्पी रहती है। मैं किसी आंटी की चूत चोदने का कोई मौका अपने हाथ से नहीं जाने देता हूं।
आज मैं आपके सामने अपनी एक और सत्य घटना लेकर आया हूं। इससे पहले कि मैं कहानी को आगे लेकर जाऊं मैं आपको अपने बारे में कुछ हल्की-फुल्की जानकारी देना चाहता हूं। मेरी उम्र 27 साल है और मेरा शरीर काफी फिट है। मैं रोज कसरत के लिए टाइम भी निकाल लेता हूं। यह मेरे रोज के रुटीन का हिस्सा है।
तो दोस्तो, बात आज से लगभग दो साल पहले की है। उस समय मैं एक कम्पनी के टेन्डर के काम से दिल्ली गया हुआ था। वहां पर मैं किराये का रूम लेकर रह रहा था। पास में ही एक सुन्दर सी आंटी रहती थी,आंटी का नाम हेमवती है, जो बहुत ही हॉट लग रही थी देखने में। हॉट से मेरा मतलब फिगर से नहीं है। औरत को हॉट उसकी अदाएं बनाती हैं, मेरा ऐसा मानना है। वो आंटी भी वैसे तो देखने में थोड़ी सी मोटी थी जैसी कि मुझे पसंद आती हैं। मुझे सूखी सी महिलाएं ज्यादा आकर्षित नहीं कर पाती हैं।
मुझे थोड़ी सेहतमंद आंटी में ज्यादा रुचि रहती है। तो उस आंटी की उम्र करीबन 33 साल के आस-पास थी। वो देखने में उससे कम की ही लगती थी। उम्र का पता तो मुझे बाद में चला था लेकिन मैं आपकी जानकारी के लिए पहले ही यहां पर लिख रहा हूं ताकि आपको उसके बदन के बारे में कुछ आइडिया मिल जाये कि वो देखने में कैसी रही होगी।
पहली नजर में ही मैं उस आंटी पर फिदा हो गया था; उसको रोज ताड़ता था। जिस दिन वो नजर नहीं आती थी, उस दिन मन में एक बेचैनी सी रहती थी। इस तरह उसको रोज देखना मेरी आदत सी बन गई थी। कई बार वो भी मेरी तरफ देख लेती थी। उसके तीखे नैन-नक्श दिल पर जैसे छुरी चला देते थे। वो मेरी तरफ देखती भी थी लेकिन अभी कुछ रिएक्ट नहीं करती थी। मैं तो उस पर लाइन मारने की पूरी कोशिश करता रहता था।
वो आंटी शायद किसी कम्पनी में ही काम किया करती थी। इसलिए कई बार घर के बाहर भी आते-जाते उससे सामना हो जाया करता था।
वो दिवाली का टाइम था और उस दिन मुझे काम करते हुए शाम ही हो गई थी। मैं ऑफिस से करीब 6 बजे निकल कर अपनी कार से अपने रूम की तरफ जा रहा था। वैसे मैं हर रोज कार लेकर नहीं जाता था। लेकिन जिस दिन मुझे ये लगता कि आज काम की वजह से देर हो सकती है उस दिन मैं कार लेकर चला जाया करता था। बाकी के दिन मैं ऑटो से ही जाता था।
तो उस दिन मैंने देखा कि वो एक बस स्टैंड पर खड़ी हुई शायद बस का इंतजार कर रही थी। मैंने मौके का फायदा उठाने की सोची। मैंने उसके पास जाकर गाड़ी रोक दी। कार रुकते ही उसकी नजर मुझ पर गई और उसने मुझे पहचान भी लिया।
लेकिन वो अभी शायद किसी असमंजस में थी कि मैंने अचानक इस तरह उसके सामने गाड़ी क्यों लगा दी। मैंने आंटी को नमस्ते किया तो वो भी हल्की सी स्माइल करने लगी।
फिर मैंने उनसे पूछा- आप यहां पर कैसे?
उसने थकावट भरी आवाज में जवाब दिया- बहुत देर से बस का इंतजार कर रही हूँ लेकिन अभी तक कोई उस तरफ की बस नहीं आई है।
मैंने झट से कहा- अगर आप बुरा न मानें तो मैं आपको लिफ्ट दे देता हूं।
वो भी जानती थी कि मैं भी पास के ही मकान में रहता हूं।
एक बार तो वो मना करने लगी लेकिन मैंने फिर से कोशिश की।
मैंने कहा- आंटी, दिवाली का टाइम है। आप लेट हो जाओगे। मैं आपको घर छोड़ दूंगा।
फिर वो कुछ सोच कर गाड़ी में बैठ गई। वो मेरे बगल वाली सीट पर ही बैठी हुई थी। वो चुपचाप बैठी हुई थी। मैंने सोचा कि ऐसे तो बात नहीं बन पायेगी। मुझे ही बात छेड़नी पड़ेगी तो मैंने उससे पूछ लिया- आप यहां पर कैसे आज?
उसने बताया कि वो यहीं पर काम करती है।
इस तरह हम दोनों के बीच में बातों का दौर शुरू हो गया।
आगे बात करने पर पता चला कि वो अपने सास और ससुर के साथ यहां पर रहती है। उसके पति महीने या दो महीने में एक बार ही घर आते हैं। उसके ससुर की एक दुकान है और सुबह होते ही वो दुकान पर चले जाते हैं। सास अक्सर भजन कीर्तन में अपना टाइम काट लेती है। इस वजह से वो घर पर कई बार अकेली ही रहती है।
मैंने उससे पूछा- आपके बच्चे कभी दिखाई नहीं दिये।
वो बोली- मुझे अभी सन्तान का सुख नहीं मिल पाया है। शादी को दस साल हो चुके हैं लेकिन पता नहीं हमें अभी तक औलाद क्यों नहीं हुई है।
उसके ये कहने पर मैं चुप हो गया। मैंने शायद गलत सवाल पूछ लिया था।
फिर वो भी चुप ही रही। कुछ ही देर में हम लोग उसके घर के बाहर पहुंच गये। उसने घर से कुछ दूरी पर ही गाड़ी रुकवा ली।
मैंने कहा कि मैं आपको घर के सामने तक छोड़ देता हूं लेकिन वो मना करने लगी। कहने लगी कि उससे ससुर ने देख लिया तो वो पता नहीं क्या सोचेंगे।
मैं भी उसकी बात से सहमत से हो गया। इसलिए उसके कहने पर मैंने गाड़ी को वहीं घर से कुछ दूरी पर ही रोक दिया।
वो उतर कर जाने लगी तो मैंने उससे उसका नम्बर मांग लिया। एक बार तो वो कहने लगी कि आप मेरे नम्बर का क्या करोगे।
फिर मैंने हिम्मत करके कह दिया कि वो सब मैं आपको बाद में बताऊंगा।
फिर उसने अपना नम्बर दे दिया और मुस्करा कर अन्दर चली गई।
मैं दिवाली मनाने के लिए अपने गांव के लिए निकल गया। घर जाकर ऐसे ही दो चार दिन निकल गये। फिर जब वापस रूम पर आया तो उस दिन आते ही आंटी के दर्शन हो गये। कयामत लग रही थी रानी आंटी।
उसको देखते ही दिल में हलचल सी मच गई और मैंने उसको टोकते हुए नमस्ते की तो वो भी मेरी तरफ देख कर हल्के से मुस्करा दी।
जब वो मुस्काराती थी तो मेरा दिन बन जाता था। उस दिन मेरा काम पर जाने का मन नहीं था। मैं रूम पर पड़ा हुआ बोर हो रहा था तो मैंने सोचा कि क्यों न आज आंटी को फोन करके देखा जाये। उसका नम्बर तो मेरे पास था ही।
मैंने आंटी को फोन किया तो उसने प्यारी सी आवाज में हैल्लो किया। मैंने बताया कि मैं उनका पड़ोसी पंकज बोल रहा हूं। मैंने उनको नमस्ते किया और उन्होंने भी वहां से नमस्ते किया। फिर वो कुछ जल्दी में लग रही थी। पूछने पर उसने बताया कि वो पैकिंग करने में लगी हुई है।
मैंने पूछा कि कहीं पर जा रहे हो क्या आप?
आंटी ने बताया कि उसके सास-ससुर पांच दिन के लिए बाहर जा रहे हैं। उन्हीं का सामान पैक करने में लगी हुई थी।
मैंने भैया के बारे में पूछा तो आंटी ने बताया कि वो तो एक दिन पहले ही काम के लिए निकल गये थे। बस दिवाली पर दो दिन के लिए आये थे। उनको कुछ जरूरी काम था तो वो वापस चले गये।
फिर वो कहने लगी कि अभी वो पैकिंग करने में व्यस्त है। इसलिए उसने बाद में बात करने के लिए कहा और फोन रख दिया।
मेरे मन में तो लड्डू फूटने शुरू हो गये थे। आंटी घर पर अकेली थी। इससे अच्छा मौका क्या हो सकता था। मैं बाहर आकर खिड़की के पास आंटी के घर पर नजर लगा कर बैठ गया कि कब उसके सास और ससुर घर से निकलेंगे और मैं आंटी को पटाने के लिए फिर से अपनी कोशिश करूंगा।
आधे घंटे के बाद मैंने देखा कि उसके सास-ससुर अपना सामान ऑटो में रख कर निकल गये। आंटी ने गेट बंद कर लिया और अन्दर चली गई।
मैंने तुरंत आंटी को फोन लगाया तो आंटी ने फोन उठा लिया। फिर हमारे बीच में बातें होने लगीं।
ऐसे ही एक दो दिन आंटी से बात करते हुए हो गया तो हम दोनों में काफी कुछ बातें होने लगीं।
फिर एक दिन मैंने उनसे कहा कि आपने बच्चों के बारे में डॉक्टर से सलाह ली है क्या?
मेरी बात को वो टाल गई।
फिर हमारे बीच में यहां-वहां की बातें होने लगीं। अगले दिन मैं घर पर ही था और आंटी भी काम पर नहीं गई थी। मैंने उनको दिन में फोन लगाया और हम दोनों घंटों तक बातें करते रहे।
फिर टाइम देखा तो शाम के 6 बज गये थे। आंटी से मैंने कहा कि अब मैं जरा खाना खाने के लिए बाहर जा रहा हूं क्योंकि मुझे काफी भूख लगने लगी थी।
वो पूछने लगी कि आप रूम पर खाना नहीं बनाते हो क्या?
मैंने बताया कि आज राशन खत्म हो गया है। इसलिए बाहर ही खाना पड़ेगा।
आंटी बोली- आप मेरे घर आकर खा लो। मैं घर पर अकेली ही हूं। मुझे भी आपका साथ मिल जायेगा और आपको बाहर खाने के लिए भी नहीं जाना पड़ेगा। जहां मैं अपने लिए खाना बनाऊँगी वहां दो लोगों के लिए बना दूंगी।
मैं आंटी की बात सुन कर खुश हो गया। मैंने तुरंत हां कह दिया। आंटी ने मुझसे 8 बजे तक आने के लिए कहा था। मेरे लिए अब टाइम काटना मुश्किल हो रहा था।
जैसे ही आठ बजे का समय हुआ तो मैं आंटी के घर के लिए चल पड़ा। मैंने अपने रूम का दरवाजा बंद कर दिया और ताला लगा दिया। मैंने एक टी-शर्ट और ढीली सी लोअर पहन रखी थी।
मैंने आंटी के घर के गेट पर जाकर बेल बजाई तो उन्होंने दरवाजा खोल दिया। मैंने उनको देखा तो मेरी नजर वहां से हट ही नहीं पाई।
आंटी ने एक रेशमी सा गाउन पहना हुआ था और उनके गीले बाल उनके कंधे पर बिखरे हुए थे। सिर आंटी ने एक स्टॉल सा डाला हुआ था लेकिन वो भी पूरी तरह से ढका नहीं हुआ था। आंटी शायद अभी-अभी नहा कर ही बाहर आयी थी।
फिर हम दोनों अंदर चले गये और आंटी ने खाना परोस दिया। आंटी के चूचों की दरार देखकर मेरी लोअर में मेरा 6 इंच के पहलवान तन रहा था। वो जब-जब प्लेट में खाना डालने के लिए झुकती तो मैं आंटी के कबूतरों को अंदर तक ताड़ जाता था। उसने नीचे से ब्रा भी नहीं पहनी हुई थी। जब आंटी एक बार झुकी तो मुझे उनके चूचे पूरे दिख गये। मेरा लौड़ा एकदम से तन गया।
मैंने बड़ी मुश्किल से खाना खत्म किया। 6 इंच के पहलवान बार-बार आंटी के चूचों के बारे में सोच कर उछल रहा था। मैंने बाथरूम में बहाने से जाकर मुट्ठ मारी तब जाकर कहीं 6 इंच के पहलवान थोड़ा शांत हुआ। खाना खाने के बाद हम यहां-वहां की बातें करने लगे।
बातें करते हुए रात के 10-11 बज गये। आंटी ने अपनी तरफ से कोई पहल नहीं की। मेरा मन आंटी की चूत चोदने का हो रहा था। लेकिन ये समझ नहीं आ रहा था कि ठुकाई बात छेड़ूं कैसे।
फिर मैं मन मार कर जाने लगा और आंटी को बोल दिया कि मैं अपने रूम पर जा रहा हूं।
आंटी पूछ बैठी- आपको अभी से नींद आ रही है क्या?
मैंने कह दिया कि नींद तो नहीं आ रही लेकिन जाकर लेट जाऊंगा तो आ जायेगी।
आंटी बोली- कुछ देर और रुक जाओ। मैं भी घर पर अकेली हूं और मुझे यहां डर भी लगने लगता है।
मेरा 6 इंच के पहलवान आंटी के मुंह से ये बातें सुनकर मेरे लोअर में तनना शुरू हो गया। मैं खड़ा हो गया था तो 6 इंच के पहलवान भी लोअर में हल्का सा तना हुआ दिखाई देने लगा था। आंटी ने एक नजर मेरे 6 इंच के पहलवान की तरफ देखा और फिर नजर फेर ली। उसके मन में भी शायद कुछ चल रहा था लेकिन वो कुछ कह नहीं पा रही थी।
मैं दोबारा से आंटी के साथ बैठ गया। फिर मैंने बच्चों वाली बात छेड़ दी।
आंटी कहने लगी- हमने कई जगह टेस्ट कराया लेकिन कुछ पता नहीं लग पा रहा है कि कहां पर कमी है।
मैं तो पहले से ही आंटी की चूत चोदने की फिराक में था। इसलिए 6 इंच के पहलवान बार-बार खड़ा होकर मुझे पहल करने के लिए उकसा रहा था।
पेशाब करने का बहाना करके मैं उठा ताकि आंटी को मेरा खड़ा हुआ 6 इंच के पहलवान दिख जाये। मैं उठा तो आंटी ने मेरी लोअर में तना हुआ मेरा 6 इंच के पहलवान देख लिया और फिर टीवी की तरफ देखने लगी।
जब मैं बाथरूम से वापस आया तो आंटी मेरे 6 इंच के पहलवान की तरफ ही देख रही थी। अब मैंने भी सोच लिया था कि जो होगा देखा जाएगा। पहल मुझे ही करनी होगी। मैं आकर आंटी के पास बैठ गया और मैंने आंटी के कंधे पर हाथ रख दिया। उसने मेरी तरफ अजीब सी नजरों से देखा लेकिन मैंने हिम्मत नहीं छोड़ी। मैं आंटी की आंखों में देख रहा था और वो मेरी आंखों में।
मैं धीरे से अपने होंठों को आंटी के होंठों के पास ले गया और फिर मैंने उसके होंठों को चूम लिया। वो थोड़ी हिचकी लेकिन मेरे अंदर अब तूफान सा उठने लगा था। मैंने आंटी के होंठों को जोर से चूसना शुरू कर दिया और दो मिनट में ही आंटी ने मेरा साथ देना शुरू कर दिया।
मुझे तो ठुकाई की जल्दी मची हुई थी। मैंने फटाक से आंटी को नंगी कर दिया। उसके गाउन को निकाल फेंका और उस पर टूट पड़ा। मैंने आंटी की टांगों को फैलाया और उसकी चूत को चाटने लगा। वो सिसकारियां लेने लगी। काफी देर तक आंटी की चूत को चाटने के बाद मैंने अपने कपड़े भी निकाल दिये।
उसके होंठों को चूसते हुए मैंने अपने 6 इंच के पहलवान को आंटी की चूत पर लगाया और 6 इंच के पहलवान को चूत में पेल दिया। आंटी ने गच्च से मेरा 6 इंच के पहलवान अपनी चूत में ले लिया। मैं बिना देरी किये आंटी की चूत को चोदने लगा। आंटी के मुंह से कामुक सिसकारियां निकलने लगीं ‘उम्म्ह … अहह … हय … ओह …’ बीच-बीच में मैं आंटी के चूचों को दबा भी रहा था और कभी उसके निप्पलों को पी रहा था।
बहुत ही गर्म माल थी रानी आंटी। उसकी चूत भी बहुत गर्म थी। उसकी चूत की गर्मी मुझे अपने 6 इंच के पहलवान पर अलग से ही महसूस हो रही थी। मैंने लगभग दस मिनट तक आंटी की चूत की ठुकाई की और फिर मैं आंटी की चूत में ही झड़ गया।
अब हमारे बीच में कोई दूरी नहीं रह गई थी। उस रात आंटी ने मुझे अपने घर पर ही रोक लिया और मैंने आंटी की चूत को रात में तीन बार चोदा और मैंने अलग-अलग पोजीशन में आंटी की चूत को चोद कर खुश कर दिया। फिर सुबह 4 बजे मैं अपने रूम पर चला गया क्योंकि आंटी ने कह दिया था कि किसी को पता नहीं चलना चाहिए कि मैं रात में उसके घर पर ही रुका हुआ था।
इस तरह अगले तीन दिन तक हमारा हनीमून चलता रहा। मैंने आंटी की चूत खूब चोदी। फिर चौथे दिन उसके सास और ससुर वापस आ गये।
फिर हमें ठुकाई का ज्यादा मौका नहीं मिल पाता था। एक दो बार तो मैंने गाड़ी में ही आंटी की चूत मारी। वो भी मेरा 6 इंच के पहलवान लेकर खुश रहने लगी थी। फिर मेरा काम वहां से खत्म हो गया और मैं अपने गांव वापस चला गया। उसके बाद मैंने उसको फोन करने की कोशिश की लेकिन उसका वो नम्बर बंद हो चुका था।
फिर मैंने भी उससे संपर्क करने की कोशिश नहीं की। लेकिन जब-जब मैंने उसकी चूत चोदी मुझे उसने बहुत मजा दिया।
तो दोस्तो।आपको ये आंटी सेक्स कहानी पसंद आई या नहीं, मुझे बताना। मैं आप लोगों के लिए आगे भी अपने साथ हुई ठुकाई की घटनाएं लेकर आता रहूंगा।